🌟 Kya yehi Pardes hai 🌟(Urdu/Hindi)
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یہ نظم، "Kya yehi Pardes hai"، پردیس میں رہنے والوں کے دل کی گہرائیوں سے نکلی ایک ایسی آواز ہے جو ان کے جذبات، احساسات، اور تجربات کی حقیقی عکاسی کرتی ہے۔ شاعر نے نہایت خوبصورتی سے پردیس کے خوابوں اور حقیقت کے بیچ کے تضاد کو بیان کیا ہے، جہاں بظاہر چمکتی دمکتی زندگی کی خواہش انسان کو اپنوں سے دور لے جاتی ہے، لیکن حقیقت میں یہ خواب تنہائی، قربانی، اور جدائی کی تلخ حقیقتوں میں بدل جاتے ہیں۔
نظم میں شاعر نے پردیس کے خواب اور حقیقت کے بیچ کے فرق کو بہت خوبصورتی سے بیان کیا ہے۔ شاعر نے ان لمحات کو اجاگر کیا ہے جب پردیس کی مصروف زندگی انسان کو اپنے پیاروں کی یاد میں گم کر دیتی ہے۔ یہ نظم اُن خوابوں کی شکست کی کہانی ہے جو پردیس کو جنت سمجھ کر دیکھے جاتے ہیں، لیکن حقیقت میں پردیس ایک ایسی زمین بن جاتی ہے جہاں اپنے وطن کی مٹی، اپنوں کی ہنسی، اور سکون بھری زندگی کی خوشبو کہیں کھو جاتی ہے۔
"Kya yehi Pardes hai" نہ صرف پردیس میں رہنے والوں کی کہانی ہے بلکہ اُن لوگوں کے لیے ایک پیغام بھی ہے جو پردیس کو خوشیوں کا محور سمجھتے ہیں۔ یہ نظم جذبات کی شدت، احساس کی گہرائی، اور حقیقت کی تلخی کا ایک شاندار امتزاج ہے، جو محبت، قربانی،
اور انسانی رشتوں کی اہمیت کو خوبصورتی سے بیان کرتی ہے۔
یہ نظم پردیس کی زندگی کے ان پہلوؤں کو نمایاں کرتی ہے جو عام طور پر نظر انداز ہو جاتے ہیں—اپنوں کی محبت کی کمی، وطن کی خوشبو کی طلب، اور تنہائی کے وہ لمحے جو دل کو چیر دیتے ہیں۔ شاعر نے پردیس کے مسافروں کے جذبات کو ایک آئینے کی طرح پیش کیا ہے، جو ان کی حقیقت کو عیاں کرتا ہے۔
"Kya yehi Pardes hai" ہر اُس دل کی آواز ہے جو اپنوں کی قربت، وطن کی مٹی، اور سکون کی زندگی کے لیے ترس رہا ہے۔ یہ نظم ان خوابوں کو آئینہ دکھاتی ہے جو چمکتی دمکتی زندگی کی تلاش میں اپنوں سے دور لے جاتے ہیں، اور پردیس کی دھند میں کھو جانے والے رشتوں اور یادوں کو بے نقاب کرتی ہے۔
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Kya yehi Pardes hai
پردیس آ کر دوستی یاری اپنے بیگانے چھوٹ گئے
ایسا لگتا ہے جیسے سبھی ہم سے روٹھ گئے
دور ہو کر اپنوں سے میں آ گیا بیگانوں میں
نہ جانے کہاں کھو گیا اپنا پن ویرانوں میں
جب نہ آئے پردیس خواہش تھی بہت آنے کی
پر آئے جب پردیس تو ٹھوکر ملی زمانے کی
جو سمجھتے ہیں پردیس ہے سپنوں کا نگر
حقیقت یہ ہے یہاں کٹتی قید کی عمر
تپتے صحرا کی گرمی میں پسینہ بہانا پڑتا ہے
اور بڑی مشقت سے کچھ پیسہ کمانا پڑتا ہے
دو پیسے جو اپنے دیس میں خوشی سے کماتے ہیں
یہاں کما کے بھی دس، سکون نہ ہم پاتے ہیں
پردیس آ کر زندگی مصروف یوں ہو جاتی ہے
چھوٹ جاتے ہیں رشتے ناتے، تنہائی پاس آتی ہے
آتی ہے یاد اپنوں کی جب تنہائی میں ہم ہوتے ہیں
بستر کے پہلو میں اس پل تکیہ تھام روتے ہیں
صبح سے لے کر شام تک کام میں ہی گزر جائے
روم پر آنے کے بعد، بس بستر نظر آئے
ایسے میں گر رات کو جو اپنوں کی یاد ستائے
نیند چلی جائے دور، بستر بھی نہ محب کو بھائے
از ✒️: محب طاہری
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Kya yehi Pardes hai/क्या यही परदेस है
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यह कविता "Kya yehi Pardes hai" उन भावनाओं और अनुभवों का सजीव चित्रण है, जो हर प्रवासी के दिल में कहीं न कहीं मौजूद होते हैं। कवि ने परदेस के सपनों और वास्तविकता के बीच के अंतर को बेहद खूबसूरती से बयान किया है। जहां एक ओर परदेस की चमक-धमक और सुनहरे भविष्य के सपने इंसान को अपनों से दूर कर देते हैं, वहीं दूसरी ओर यह सपना हकीकत में अकेलेपन, बलिदान और जुदाई की कड़वी सच्चाई में बदल जाता है।
कविता में कवि ने उन पलों को उकेरा है, जब परदेस की व्यस्त जिंदगी इंसान को अपने प्रियजनों की याद में खो जाने पर मजबूर कर देती है। यह कविता उन सपनों की टूटन की कहानी है, जो परदेस को स्वर्ग समझकर देखे जाते हैं, लेकिन असलियत में परदेस एक ऐसी जगह बन जाती है, जहां अपने वतन की मिट्टी, अपनों की हंसी और सुकूनभरी जिंदगी की खुशबू कहीं खो जाती है।
"Kya yehi Pardes hai" न केवल प्रवासियों की कहानी है, बल्कि उन लोगों के लिए एक संदेश भी है, जो परदेस को खुशियों का केंद्र मानते हैं। यह कविता भावनाओं की गहराई, एहसास की तीव्रता और सच्चाई की कड़वाहट का एक बेहतरीन संगम है, जो प्रेम, त्याग और मानवीय रिश्तों की अहमियत को खूबसूरती से उजागर करती है।
यह कविता परदेस की जिंदगी के उन पहलुओं को सामने लाती है, जो अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं—अपनों के प्यार की कमी, वतन की मिट्टी की महक और अकेलेपन के वे पल, जो दिल को चीर कर रख देते हैं। कवि ने प्रवासियों के अनुभवों को एक आईने की तरह पेश किया है, जो उनकी वास्तविकता को उजागर करता है।
"Kya yehi Pardes hai" हर उस दिल की आवाज है, जो अपनों की नज़दीकी, वतन की मिट्टी और सुकूनभरी जिंदगी के लिए तरस रहा है। यह कविता उन सपनों को आईना दिखाती है, जो चमचमाती जिंदगी की तलाश में अपनों से दूर ले जाते हैं, और परदेस की धुंध में खो जाने वाले रिश्तों और यादों को बेनकाब करती है।
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क्या यही परदेस है
परदेस आकर दोस्ती-यारी, अपने बेगाने छूट गए
ऐसा लगता है जैसे सभी हमसे रूठ गए
दूर होकर अपनों से, मैं आ गया बेगानों में
न जाने कहाँ खो गया अपनापन वीरानों में
जब ना आए परदेस, ख्वाहिश थी कितनी आने की
पर आए जब परदेस, तो ठोकर मिली ज़माने की
जो सोचते हैं परदेस आने में कितना मज़ा है
ये हकीकत जान लें, यहाँ मिलती क़ैद की सज़ा है
दो पैसे ही अच्छे, जो अपने देश में कमाते हैं
यहाँ कमाकर दस पैसे भी, न सुकून हम पाते हैं
परदेस आकर ज़िंदगी, मशगूल यूँ हो जाती है
छूट जाते हैं रिश्ते-नाते, तन्हाई पास आती है
आती है याद अपनों की, जब तन्हाई में हम होते हैं
बिस्तर के पहलू में उस पल तकिया थाम रोते हैं
सुबह से लेकर शाम तक काम में ही गुज़र जाए
रूम पर आने के बाद, बस बिस्तर नज़र आए
ऐसे में गर रात को जो अपनों की याद सताए
नींद चली जाए दूर, बिस्तर भी न मोहिब को भाए
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🌸✨🌿 ~ Mohibz Tahiri ~ 🌿✨🌸
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