Apna Ghar Nahi Lagta/अपना घर नहीं लगता
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Apna Ghar Nahi Lagta |
غزل اردو ادب کا وہ حسین رنگ ہے جس میں محبت، اُلفت اور جذبات اپنی پوری شدت کے ساتھ جھلکتے ہیں۔“Apna Ghar Nahi Lagta” ایک ایسی دل کو چھو لینے والی غزل ہے جس میں شاعر نے جدائی کا درد، دل کی بے قراری، اور محبوب کی قربت کی اہمیت کو نہایت خوبصورت پیرائے میں بیان کیا ہے۔
اس غزلApna Ghar Nahi Lagta میں نہ صرف عشق و محبت کا ذکر ہے بلکہ اخلاق، خلوص اور طرزِ تکلّم کی اہمیت کو بھی نمایاں کیا گیا ہے۔ یہی وجہ ہے کہ یہ غزل قاری کو ایک ایسے سفر پر لے جاتی ہے جہاں دل کا سکون صرف محبوب کی یاد اور قربت سے وابستہ ہے۔
اگر آپ اردو شاعری، غزل، محبت کی نظمیں یا رومانوی اشعار تلاش کر رہے ہیں تو یہ غزل آپ کے دل کو ضرور چھو جائے گی۔
محبت اور اُلفت کے جذبات جب الفاظ کا رُوپ دھارتے ہیں تو وہ اشعار کی صورت میں دلوں کو چھو جاتے ہیں۔ یہ غزل بھی اُسی کیفیت کا اظہار ہے جس میں محبوب کی جدائی، دل کی بے قراری، وقت کی ویرانی اور تعلق کی مٹھاس سب کچھ ایک ساتھ سمویا گیا ہے۔ شاعر نے نہ صرف عشق کی نازک کیفیات کو بیان کیا ہے بلکہ اخلاق، خلوص اور طرزِ گفتگو کی اہمیت کو بھی نمایاں کیا ہے۔
یہ غزلApna Ghar Nahi Lagta قاری کو اُس دنیا میں لے جاتی ہے جہاں دل کا سکون صرف محبوب کی قربت سے وابستہ ہے اور جہاں ہر شے اُسی کی یاد میں رنگ و رُوپ اختیار کرتی ہے۔
اگر آپ اردو شاعری، غزل، محبت کی نظمیں یا رومانوی اشعار تلاش کر رہے ہیں تو یہ غزل آپ کے دل کو ضرور چھو جائے گی۔
محبت اور اُلفت کے جذبات جب الفاظ کا رُوپ دھارتے ہیں تو وہ اشعار کی صورت میں دلوں کو چھو جاتے ہیں۔ یہ غزل بھی اُسی کیفیت کا اظہار ہے جس میں محبوب کی جدائی، دل کی بے قراری، وقت کی ویرانی اور تعلق کی مٹھاس سب کچھ ایک ساتھ سمویا گیا ہے۔ شاعر نے نہ صرف عشق کی نازک کیفیات کو بیان کیا ہے بلکہ اخلاق، خلوص اور طرزِ گفتگو کی اہمیت کو بھی نمایاں کیا ہے۔
یہ غزلApna Ghar Nahi Lagta قاری کو اُس دنیا میں لے جاتی ہے جہاں دل کا سکون صرف محبوب کی قربت سے وابستہ ہے اور جہاں ہر شے اُسی کی یاد میں رنگ و رُوپ اختیار کرتی ہے۔
Apna Ghar Nahi Lagta
سوائے تیرے, کوئی بھی ہمسفر نہیں لگتا
ترے بغیر یہ راہ بھی, اب رہگزر نہیں لگتا
ترے بغیر یہ راہ بھی, اب رہگزر نہیں لگتا
تجھی سے زندگی کا ہے ہر رنگ جڑا ہوا
یہ تنہائی کا لمحہ اب مختصر نہیں لگتا
ویرانی چھائی ہے مسکن میں، تیرے جانے سے
نہیں ہے تو جو اب گھر , اپنا گھر نہیں لگتا
جہاں مِلتا نہیں پیار و اُلفت میرے یاروں
وہ دَر میرے محبوب کا ہرگز دَر نہیں لگتا
نہ سکون ہے، نہ چین ہے، نہ دل کو ہے قرار
اب پہلے سا یہاں کا، شام و سحر نہیں لگتا۔
پہچان ہے بشر کی کہ وہ بشریت میں ہی رہے
کوئی مخلوق اِس جہاں میں بڑھ کر نہیں لگتا۔
نہ آئی اس بہار میں بھی باغ میں رنگت،
نہ جانے کیوں کوئی شجر، شجر نہیں لگتا۔
بڑے ملیں گے، پر کون ہے، ہو اخلاق سے بڑا
نہ ہو خلوص جس میں وہ معتبر نہیں لگتا۔
راہِ عشق میں آتی ہیں دشواریاں بھی بہت
گر یار کی نظر ہو تو، مشکل رہگزر نہیں لگتا
جو بات دل کو ٹھیس، گر پہنچائے دوستو
وہ طرزِ تکلّم محب کو کبھی بہتر نہیں لگتا
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जब मोहब्बत और उल्फ़त के जज़्बात शब्दों का रूप लेते हैं तो वे शायरी बनकर सीधे दिल में उतर जाते हैं। यह ग़ज़ल भी उसी एहसास की झलक है जिसमें महबूब की जुदाई, दिल की बेक़रारी, वक़्त की वीरानी और रिश्तों की मिठास सब कुछ एक साथ समाया हुआ है।
शायर ने न सिर्फ़ इश्क़ की नाज़ुक कैफ़ियत को बयाँ किया है बल्कि अख़लाक़, ख़ुलूस और तर्ज़-ए-तकल्लुम (बात करने के अंदाज़) की अहमियत को भी उभारा है।
यह ग़ज़ल Apna Ghar Nahi Lagta पाठक को उस दुनिया में ले जाती है जहाँ दिल का सुकून सिर्फ़ महबूब की क़ुर्बत से जुड़ा होता है और जहाँ हर शय उसी की याद से रंग और रौनक पा लेती है।
ग़ज़ल उर्दू शायरी का वह हसीन अंदाज़ है जिसमें मोहब्बत, उल्फ़त और जज़्बात पूरे शिद्दत से झलकते हैं। “Apna Ghar Nahi Lagta” एक ऐसी दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल है जिसमें शायर ने जुदाई का दर्द, दिल की बेक़रारी और महबूब की क़ुर्बत की अहमियत को बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में बयाँ किया है।
इस ग़ज़ल में सिर्फ़ इश्क़ ही नहीं बल्कि इंसानियत, अख़लाक़ और तर्ज़-ए-तकल्लुम (बात करने का अंदाज़) की अहमियत भी साफ़ नज़र आती है। यही वजह है कि यह ग़ज़ल पाठक को उस दुनिया में ले जाती है जहाँ दिल का सुकून सिर्फ़ महबूब की याद और मोहब्बत से जुड़ा होता है।
अगर आप हिंदी-उर्दू शायरी, ग़ज़लें, मोहब्बत की नज़्में या रूमानी अशआर पढ़ना चाहते हैं तो यह ग़ज़ल आपके दिल को ज़रूर छू जाएगी।
शायर ने न सिर्फ़ इश्क़ की नाज़ुक कैफ़ियत को बयाँ किया है बल्कि अख़लाक़, ख़ुलूस और तर्ज़-ए-तकल्लुम (बात करने के अंदाज़) की अहमियत को भी उभारा है।
यह ग़ज़ल Apna Ghar Nahi Lagta पाठक को उस दुनिया में ले जाती है जहाँ दिल का सुकून सिर्फ़ महबूब की क़ुर्बत से जुड़ा होता है और जहाँ हर शय उसी की याद से रंग और रौनक पा लेती है।
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ग़ज़ल उर्दू शायरी का वह हसीन अंदाज़ है जिसमें मोहब्बत, उल्फ़त और जज़्बात पूरे शिद्दत से झलकते हैं। “Apna Ghar Nahi Lagta” एक ऐसी दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल है जिसमें शायर ने जुदाई का दर्द, दिल की बेक़रारी और महबूब की क़ुर्बत की अहमियत को बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में बयाँ किया है।
इस ग़ज़ल में सिर्फ़ इश्क़ ही नहीं बल्कि इंसानियत, अख़लाक़ और तर्ज़-ए-तकल्लुम (बात करने का अंदाज़) की अहमियत भी साफ़ नज़र आती है। यही वजह है कि यह ग़ज़ल पाठक को उस दुनिया में ले जाती है जहाँ दिल का सुकून सिर्फ़ महबूब की याद और मोहब्बत से जुड़ा होता है।
अगर आप हिंदी-उर्दू शायरी, ग़ज़लें, मोहब्बत की नज़्में या रूमानी अशआर पढ़ना चाहते हैं तो यह ग़ज़ल आपके दिल को ज़रूर छू जाएगी।
अपना घर नहीं लगता । मोहब्बत और जुदाई पर एक दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल
सिवाय तेरे, कोई भी हमसफ़र नहीं लगता,
तेरे बग़ैर ये राह भी, अब रहगुज़र नहीं लगता।तुझी से ज़िन्दगी का है हर रंग जुड़ा हुआ
ये तन्हाई का लम्हा अब मुख़्तसर नहीं लगता।
वीरानी छाई है मसकन में मेरे, तेरे जाने से
नहीं है तू जो अब घर, अपना घर नहीं लगता।
जहाँ मिलता नहीं प्यार और उल्फ़त मेरे यारों,
वो दर मेरे महबूब का हरगिज़ दर नहीं लगता।
न सुकून है, न चैन है, न दिल को है क़रार,
अब पहले सा यहाँ का, शाम व सहर नहीं लगता।
पहचान है बशर की कि वो बशरियत में ही रहे
कोई मख़लूक़ इस जहाँ में बढ़कर नहीं लगता
ना आई इस बहार में भी बाग़ों में रंगत,
न जाने क्यों कोई शजर शजर नहीं लगता।
बड़े मिलेंगे, पर कौन है, हो अख़लाक़ से बड़ा
न हो ख़ुलूस जिसमें वो मुअतबर नहीं लगता
राह-ए-इश्क़ में आती हैं दुश्वारियाँ भी बहुत,
गर यार की नज़र हो, मुश्किल रहगुज़र नहीं लगता
जो बात दिल को ठेस अगर पहुँचाए दोस्तों !
वो तर्ज़-ए-तकल्लुम मोहिब को बेहतर नहीं लगता
🌸✨🌿 ~ Mohibz Tahiri ~ 🌿✨🌸